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Tuesday, November 24, 2015
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Sajid malik ke mukhtasar halaat.in Hindi
साजिद के मुख़्तसर हालात
जो भी सुन रहे हो इस महफ़िल के मुअज़्ज़ज़् सितारों।
वो हे मेरी मुख़्तसर सी दास्ताँ यारो।
नाम हे मेरा साजिद और वालिद को क़ासिम कहते हैं।
करते हैं काम राज गिरी का और बिजनोर में रहते हैं।
बताता हूँ के पहले में मामू के पास पढता था
याद तो होता नहीं था पर कोशिश बहुत करता था
आखिर कार खुदा ने मुझे हाफ़िज़ बना दिया
उसके बाद दाखला मेरा सराय में करा दिया
मोली असद के पास याद किया मेने क़ुरआन वहां पर
मोली अतहर और क़ारी ज़ुबेर भी रहते थे जहाँ पर
कोशिश से अपनी आगे बढ़ने का था जोश
बनना हे मौलाना बचपन से थी ये मेरी सोच्
ब फज़ले खुदा जब क़ुरआन याद हो गया मेरा
तो करके राये जलालाबाद में दाखला किया मेरा
वही जलालाबाद मौलाना अक़ील जहाँ रहते हैं
बिलाल और इमरान को मंतिक़ और फिक़्ह का इमाम कहते हैं
पाई गई हे मौलाना शाहनवाज़ में भी बड़ी नज़ाकत।
और माहिर थे उसुले फिक़्ह में मोली शराफत
और हिफ़्ज़ में नदीम और ज़हीर दर्स देते थे।
और थे एक उस्ताज़ जिनको कारी नाज़िम कहते थे।
इस मदरसे के नाज़िम कारी अल्ताफ थे।
जो बुजुर्गियत में अपनी माहताब थे।
आखिर जब में पकहुँचा तो दिल नहीं लगा मेरा वहां
पर देख कर उस्ताज़ो की शफक़्क़्त मेरे दिल ने कहा
के यही वह मदरसा हे अच्छी जिसमे तालीम दी जाती हे
और उस्ताज़ो के नरम वो नाज़ुक इशारो से तरबियत भी की जाती हे
रफ्ता रफ्ता चौथा साल भी गुज़ार गया मेरा
और कुछ साथियो ने आखिर तक साथ दिया था मेरा
जिक्र करूँ उनके नाम को में ज़रूरी समझता हूँ
दोस्त हैं वह मेरे जिन्हें में लईक और आमिर कहता हू
और हे एक और आमिर जो जलालाबाद में रहता हे
आज अब्दुल अलीम की निस्बत से अबसार भी नेता हे
मुजाहिद और बिलाल की दोस्ती अब भी इत्तिहास हे
और फहीम भाई के अलविदा का हमें अब भी अहसास हे
और साथ में रहते थे हमारे शहबाज़ भाई
शायद उन्हों ने हम से अलग रहने की क़सम खाई
किस्मत करगई काम हम्माद और मुबीन का नंबर आगया
तो ख़ुशी से सब साथियो का चेहरा जग मगा गया
जब देवबंद में नंबर हमारा न आया
तो मसकन हमारा अमरोहा क़रार पाया
देखा मेने यहाँ उस्तज़ो में इत्तिफ़ाक़
कीना कपट से ये लोग करते हैं इजतिनाब
मुफ़्ती अफ्फान यहाँ माहिर हे फ़साहत और बलाग़त में
मुफ़्ती अंसार भी माहिर हे यहाँ अदब और इबारत में
मुफ़्ती फ़ुरक़ान भी जहाँ एक मुजाहिद हैं
तो बुजुर्गियत में यहाँ मुफ़्ती शहीद हैं
फिक़्ह के इमाम समझे जाते हैं रियासत अली
और अब्दुल गफूर की नॉलिज से भी खिलती हैं कली
मुफ़्ती ज़ाहिद की मंतिक़ भी मशहूर हे
पियार से समझाने में वह मारूफ़ हैं
बताता चलूं सब से खतरनाक कोन हे
नाम हे उनका रिफाकत और लक़ब डॉन हे
उस्तज़ तो हे बहुत पर मुख़्तसर कर दिया मेने
और वगेरह कहकर ज़िक्र को खत्म करदिया मेने
गलती से भूल गए थे हम इब्राहीम और राशिद को
पर आगई याद उनकी बीरा दरे आबिद को
एक मर्तबा जब सफ़र किया ढकके का मेने
तो देखा ज़हूर और ऐजाज़ को दोम पढ़ते मेने
वही सब साथी जो सराये में रहते थे
उन्ही में से दो को वक़ार और आदिल कहते थे
ख़ास साथियो में से रफत और शादाब थे
माइंड में अपने दोनों ही महताब थे
सफ़र के साथ ख़त्म करता हूँ में अपना कलाम
पढ़ने और सुनने वालो को मेरा दिल से सलाम
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Sajid Malik ke mukhtasar halaat.in Urdu
ساجد کے مختصر حالات
جو بھی سن رهے هو اس محفل کے معزز ستاروں
وه هے میری مختصر سی داستاں یارو
نام هے میرا ساجد اور والد کو قاسم کهتے هیں
کرتے ہیں کام راج گری کا اور بجنور میں رهتے هیں
بتاتاهوں کے پهلے میں ماموں کے پاس پڑھتا تھا
یاد تو هوتا نہیں تھا پر کوشش بہت کرتا تھا
آخر کار خدا نے مجھے حافظ بنا دیا
اس کے بعد داخلۂ میرا سراۓ میں کرا دیا
مولي اسعد کے پاس یاد کیا مینے قرآن وهاں پر
مولي اطهر اور قاری زبﻱر بھی
رهتے تھے جهاں پر
کوشش سے اپنی آگے بڑھنے کا تھا جوش
بنا هے مولانا بچپن سے تھی یہ میری سوچ
بفضل خدا جب قرآن یاد ہو گیا میرا
تو کرک راے جلال آباد میں داكھلا کیا میرا
وهی جلال آباد مولانا عقیل جہاں رہتے هیں
بلال اور عمران کو منطق اور فقہ کا امام کهتے هیں
پائی گئی هے مولانا شاه نواز میں بھی بڑی نزاکت
اور ماهر تھے اصول فقہ میں مولي شرافت
اور حفظ میں ندیم اور ظہیر درس دیتے تھے
اور تھے ایک استاذ جن کوقاری ناظم کهتے تھے
اس مدرسۃ کے ناظم قاری الطاف تھے
جو بزرگيت میں اپنی مہتاب تھے
آخر جب میں پهنچا تو دل نہیں لگا میرا وهاں
دیکھ کر استاذو کی شفقت میرے دل نے کہا
کے یهی وه مدرسہ هے اچچهی جس میں تعلیم دﻱجاتی هے
اور استاذو کے نرم و نازک اشارو سے تربیت بھی کی جاتی هے
رفتہ رفتہ چوتھا سال بھی گزر گیا میرا
اور کچھ ساتھیوں نے آخر تک ساتھ دیا تھا میرا
ذکر کروں ان کے نام کو میں ضروری سمجھتا هوں
دوست هیں وه میرے جنهیں میں لئﻱق اور عامر کهتا هوں
اور هے ایک اور عامرجو جلال آباد میں رهتا ہے
آج عبدالعلیم کی نسبت سے ابصار بھی نیتا هے
مجاهد اور بلال کی دوستی اب بھی اتتهاس هے
اور فهہیم بھائی کے الوداع کا ہمیں اب بھی احساس اے
اور ساتھ میں رہتے تھے ہمارے شہباز بھائی
شاید انہوں نے ہم سے الگ رہنے کی قسم کھائی
قسمت کرگئی کام حماد اور مبین کا نمبر آگیا
تو خوشی سے تمام ساتھیوں کا چہهرا جگ مگا گیا
جب دیوبند میں نمبر همارا نہ آیا
تو مسكن همارا امروهہ قرار پایا
دیکھا میں نے یہاں استاذو میں اتفاق
کینہ کپٹ سے یہ لوگ کرتے هیں اجتناب
مفتی عفان یہاں ماهر هے فصاحت اور بلاغت میں
مفتی انصار بھی ماهر هے یهاں ادب اور عبارت میں
مفتی فرقان بھی جهاں ایک مجاہد هیں
تو بزرگيت میں یهاں مفتی شاهد هیں
فقہ کے امام سمجھے جاتے هیں ریاست علی
اور عبدالغفور کی نولج سے بھی كھلتي هے کلی
مفتی زاهد کی منطق بھی مشہور هے
پیار سے سمجھانے میں وه معروف هیں
بتاتا چلوں سب سے خطرناکون هے
نام هے انکا رفاقت اور لقب ڈون هے
استاذ تو هے بہت پر مختصر کر دیا مینے
اور وغﻱره کہہ کر ذکر کو ختم کردیا مینے
غلطی سے بھول گئے تھے ہم ابراہیم اور راشد کو
پر آگئی یاد ان کی برا درے عابد کو
ایک مرتبہ جب سفر کیا ڈھككۂ کا مینے
تو دیکھا ظهور اور اعجاز کو دوم پڑھتے مینے
وهی سب ساتھی جو سراۓ میں رهہتے تھے
انہی میں سے دو کو وقار اور عادل کہتے تھے
خاص ساتھیوں میں سے رفعت اور شاداب تھے
مائنڈ میں اپنے دونوں هی مهتاب تھے
سفر کے ساتھ ختم کرتا ہوں میں اپنا کلام
پڑھنے اور سنےوالو کو مﻱرا دل سے سلام
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Tuesday, November 10, 2015
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