Sunday, March 26, 2017

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Mohabbat

मोह्ब्बत के मीम से ना वाक़िफ मोह्ब्बत करने बेठे हेँ

जिन्हे मोह्ब्बत नही आती वोह मोहब्बत करने बेठे हैँ

ओर मोह्ब्बत तो हर ऐक से हो सकती हे ऐ मेरे दोसत

ना के लड़की से मोहब्बत को ही मोह्ब्बत कहते हेँ



Muhammad s/w

किया लिखू मेँ मोहम्मद कि शान मेँ

सब तो मोजूद हे ख़ुद क़ुरआन मेँ

इन्तिहा होगई बस कुछ देर ये सोचने के बाद

के सानी नही कोई उन्का पूरे जहान मेँ


Election 2017

कभी थे हम उनके दर पर

अब आये हैं ये हमारे दर पर



हाँ ये तो सियासी रास्ता है

वरना कहाँ हमसे वास्ता हे



अब आये हैं हम से वोट लेने

रिशवत में हम को नोट देने

फिर हमको वही चोट देंगे

आज हम जिनको वोट देंगे



बाद वोटिंग न कोई रास्ता है

हाँ ये तो सियासी रास्ता है



आज हम जिसको देखते हैं

वही लंबी लंबी फेंकते हैं

हम गरीबो को बना कर निशाना

टेढ़ी नज़र से देखते हैं



अब तो गरीबो के लिए नाश्ता हे

हाँ ये तो सियासी रास्ता है



भाइयो तुम संभल के रहना

बाद वोटिंग के फिर न कहना

गोर ओ फ़िक्र से बटन दबाना

कियोंकि विपक्षी दल को हे हराना


दोस्तों ये साजिद की दास्ताँ हे

हां ये तो सियासी रास्ता है



14 फरवरी

मतलब कि दुन्या मेँ हर आक़िल रो गया

अंगरेज़ो के चक्कर मेँ हर आशिक़ खो गया

आज गेरत कितनी अंधी होगई ऐ साजिद

जो लड़की पटाने का भी अलग Day हो गया


तारीफ़
गुड ,नाइस, और स्मारट किया किया कहूं तुमको

आख़िर ज़माने का ही हसीन कह डालू तुमको

ओर कियोँ न लिखूं हुस्न का गोहर ओर चमन का पेकर तुम हो

हमेँ हुस्न से किया लेना दर असल हम्मेँ बा वाक़ार तुम हो

मओहब्बते माँ
ये सच हे दोसतो की दुआओ मेँ फरिशतो की आवाज़ होती हे?

ओर मोहब्बत भरी दुआ हमेशा ही परवाज़ होती हे

लेकिन इन दुआओ से कहीँ बेहतर हे माँ कि दुआऐँ

कियोँ के माँ कि दुआऐँ हि हमारी तरक़्क़ी का राज़ होती हे



बिजनोरी की दोस्ती


ये किसने कह दिया बिजनोरी परेशानी मेँ साथ नही देते

अपने सामने गिरता देख़ भी हाथ नही देते

अरे दोसतो की खातिर तो बिजनोरी लाख उठाते हेँ सितम

ओर उस वक़्त तक छोडते नही साथ जब तक दोसती को अंजाम नही देते


बचपन बड़ा पियारा हे

हाँ हक़ीकत मेँ बच्पन का ज़माना कुछ ओर होता हे

न गलयोँ मेँ आंसू का कोई गोर होता हे

ओर न होता हे कोई गम किसी कि डांट व फटकार का

लेकिन अब तो ऐश मेँ भी हर वक़्त दिल बोर होता हे

केक्रिसमस डे पर एक ने टॉप लगा रखा था

ये किया हे ओर किया लगा रख्खा हे

सर पे आशयाना सा सजा रख्खा हे

किरिसमस बनाना शरीअत से नही साबित

वेसे तुम्हे तो आलिमो ने काफी बता रख्खा हे


जंग वो ग़ज़वात का खुलासा
ओहदो खंदक़ फतहे मक्का ओर जंगे बदर

कब कहां ओर केसे हुवी जंगे जबल

पेश हे गज़वात कुछ ऐ मुअज़्ज़ नाज़रीन

फक़त दुआ गो हे साजिद ओर उसके शारिकीन



(ये शेर मसनद अनसारी के नाम)

दूसरो के अशआर से तुम खुद को महान कह गये

हमारी काविशो को तुम र्सिफ दुन्या मेँ नाम कह गये

अजब ज़माना हे इन्सान कि फितरत तो देखये

इतने अशआर लिख कर भी हम गुम नाम रह गये



{ये शेर ऐक तालिबे इलम के लिये लिखा
~जिसने बिना टोपी के अपनि इमेज अपलोड
 कि}

किया लाइक करु भाई सब कुछ तो अब फेक होरहा
हे॰॰॰
नोटो से लेकर मोबाइल तक हेक होरहा हे॰॰॰
चहरा ख़ुब सूरत हे पर टोपी नही सर पर॰॰॰
यही वजह हे के मुझसे फोटो रिजेकट होरहा हे


छोड़ शैतान की मजलिस पकड़ अल्लाह की रस्सी



ख़ुदा से ङरने वालो का भला कुछ नही होता

मिटाते हैँ अंधेरो को पर उन्को कुछ नहि होता

ये दुनयावी मजालिस हैँ न इन्मेँ तू बसेरा कर

ओर दीनी मजालिस मेँ तो कोई शेतां भी नही होता

Sunday, January 8, 2017

sajid malik

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Tuesday, August 16, 2016

Eid ulazha new shayri.in urdu

                     عیدالاضحی

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ابتداء ے یہ شاعری هے اس خدا کی شان میں
   جس کا ہمسر کوئی نہیں سارے جہان میں

                قبل اس کے ہم کرے کچھ اپنا کلام
             بھیج لیں پیارے نبی پر درود و سلام

  سب سے پہلے هو مبارک عیدالضحﻱ تمہیں
     پھر اجازت دیجئے کچھ کہنے کی ہمیں

    ذی الحج کے چاند کی جب ہم کو ہوگی خبر
    دل میں خوشی هوگی ہمارے کچھ اس قدر

   سوچتے ہوں گے کۂ قربانی کریں گے ہم جناب
  کر خدا کو راضی ثواب پاے گﻱں بے حساب

          فضيلت ماه میں پیارے نبی کا فرمان هے
         اولا. نو(9) روز میں تو بڑا ہی انعام هے

    ایک روزه مثل هے (برابر هے) ایک سال
    اور يوم عرفات کا سائم تو هے بے مثال

       لايگﻱں بھیڑو بکری خرید کر ہم جناب
      اور بھی ہوں گے موےشی جنکی قربانی هے حلال

     بس ایک بات کا خیال رکھنا هے ہمیں
     عرض كردوں تاکہ کوئی ضرر نہ ہو تمہیں

      لنگڑا کانا اور نہ ایسا دبلا ہو جانور
      ظاهرا هڈیاں اس کی نہ آئے بالکل نظر

  وقت شرائ جانور کی قیمت میں نہ کرنا تم کمی
   ہو بہتر سے بہتر جانور افضل هے یہی

     قربانی کے مزید مسائل بھی ہیں جناب
    ربط علماۂ سے ملیں گے آپ کو بے حساب

   سوچتا ہوں تاریخ پر بھی ڈالوں ایک نظر
    واقعہ ابراہیم بھی لکھ ڈالوں ادھر

 شوق سے لکھا هے اس واقعہ کو تاریخ نے
؛    کے خواب دیکھا تھا ایك حضرت ے ابراہیم نے

    بیٹے کو ذبح کرتے دیکھ ،هوگيے حیران پدر
    كرديے ذبح اونٹ ابراہیم نے بے ضرر

  تین دن تک خواب یہ ہی آیا نظر
   پھر سمجھ آیا کے مطلوب هے نور ے نظر

         اٹھ کے پہنچے  پہلے هاجره کے پاس وہ
         سوچتے تھے کے هاجره پر یہ ظاہر نہ ہو

   اسماعیل کو لے کر گئے وہ مینا کے میدان میں
      تین بار ماری کنکر راستے میں شیطان کے

     بولے ذبح کا حکم هے تم کو اے میرے نور نظر
          اسماعیل بولے تم نہ کرو بالکل بهی فکر

  اے ابو جان حکم رب هے تو جلدی کیجئے
   میری جانب سے بالکل بھی نہ گم کیجئے

       ذبح ہونے کے لئے میں بالکل تیار ہوں
       فیصلہ اے رب سے میں بہت ہی شاد ہوں

     لیٹا دیا خلیل الله نے اسماعیل کو زمین پر
        هاتھ میں لی چھری اور پٹی باندھی آنکھ پر

     حکم رب سے وه چھری اسماعیل پر نہ چلی
     لاکھ کوشش کی پر وه چھری نہ چلی

    ادھر ہوگیا حکم دنبہ لانے کا جبرائیل کو
    دنبہ رکھ کر جبرائیل نے نکالا اسماعیل کو

     ہوتے ہی ذبح کھولی آنکھ جیسے ابراہیم نے
  ملا دنبۂ ذبح، جو بھیجا تھا مالک ے عظیم نے

   کرکۂ دنبہ ذبح ثواب پایا بیٹے کا ابراہیم نے
  ادھر کامیابی کا سنا ڈالا پروانہ شہنشاه ے کریم نے

    دے کر شکست شیطان کو ابراہیم پہنچےاپنے گھر
    فضل ے خدا سے ساتھ  ہیں انکے نور نظر

   پھر گھر آکر آپ نے بتایا سارا ماجرا
    یہ سن کر بہت خوش هوي حضرت هاجرا

  واقعہ ے ابراہیم تو پڑھ ہی لیا آپ نے
   کے کیسی قربانی پیش کی ان  بیٹے اور باپ نے

  میرے مولا کو اتنی پسند آئی قربانی جناب
    واجب هے ہم پر بھی گر ہو صاحب ے نصاب

   کوئی غریب بھی کرتا هے قربانی جناب
   مالک ے دو جہاں دیں گے اسے بے حد ثواب

    فضیلت ے قربانی میں سے یہ بھی خاص هے
   قطرۂ ے لہو گرنے سے قبل گناه بھی معاف هے

   ہو قربانی میں ایسا جانور جس کی قربانی ہو حلال
   افضل هے یہی کۂ. زیاده سے زیاده هو اس کے بال

   دوستوں ہر بال کے بدلے بڑھا کر نیکی دی جائے گی
   اور شیئ مذبوحا کو بڑھا کر بھی تولی جائے گی

    اسی لئے موٹا فربه هو قربانی کا جانور
  تاکۂ تو حشر میں ہو بہت ہی نامور

  10 ذی الحج سے ہوگی قربانی یہ تو سب کو یاد هے
  کر کے تصور بس یہی ساجد بہت ہی شاد هے

  بس یاد رکھنا هے یہ عید رہتی هے تین دن
  ابتداء ے تکبیر یوم ے عرفات هے اور انتہا بس پانچ دن

مختصر کردیا ساجد بجنوري نے اپنا کلام
   پڑھنے والو کو اے اهل ے بجنور کی جانب سے سلام

کاتب،،،،محمد ساجد ملک مکهواڑه
موبائل نمبر 8449121198

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Eidul azha new shayri.in hindi

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                   in urdu
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                ईदुल     अज़हा

  इब्तिदा ये शायरी हे उस खुदा की शान में
  जिसका हमसर कोई नहीं सारे जहान में

              क़ब्ल इसके हम करे कुछ अपना कलाम
              भेज लें पियारे नबी पर दुरूद वो सलाम

  सब से पहले हो मुबारक मुबारक ईदुलाज़हा तुम्हें
     फिर इजाज़त दीजिए कुछ कहने की हमें

     ज़िल हिज्ज के चाँद की जब हम को होगी खबर
         दिल में खुशी होगी हमारे कुछ इस क़दर

  सोचते होंगे के क़ुरबानी करेंगे हम जनाब
  कर खुदा को राज़ी सवाब पायेगे बे हिसाब

         फ़ज़ीलते माह में पियारे नबी का फरमान हे
            अव्वलं नो रोज़ में तो बड़ा ही इनाम हे

  एक रोज़ह मिस्ल हे (बराबर हे) एक साल
  और योमे अरफात का साइम् तो हे बे मिसाल

     लायेगें भेड़ व बकरी खरीद कर हम जनाब
    और भी होंगे मुवेशि जिनकी क़ुरबानी हे हलाल

  बस एक बात का ख्याल रखना हे हमें
  अर्ज़ करदूं ताके कोई ज़रर न हो तुम्हे

     लंगड़ा काना और न ऐसा दुबला हो जानवर
     ज़ाहिरं हड्डियां उसकी न आये बिलकुल नज़र

वक़्ते शिरा जानवर की कीमत में न करना तुम कमी
   हो बेहतर से बेहतर जानवर अफज़ल हे यही

       क़ुरबानी के मज़ीद मसाइल भी हैं जनाब
      रबते उलमा से मिलेंगे आप को बे हिसाब

   सोचता हूँ तारीख पर भी डालूं एक नज़र
   वाकिया ऐ इब्राहीम भी लिख डालूं इधर

     शोक से लिखा हे इस वाकिये को तारीख ने
     के ख्वाब देखा था औक हज़रते इब्राहीम ने

  बेटे को ज़िबह करते देख होगये हैरान पिदर
  करदिये ज़िबह ऊँट इब्राहीम ने बे ज़रर

       तीन दिन तक खवाब ये ही आया नज़र
       फिर समझ आया के मतलूब हे नूरे नज़र

  उठ के पहुंचे पहले हाजरह के पास वह
  सोचते थे के हाज़रह पर ये ज़ाहिर न हो

    इस्माईल को लेकर गए वह मीना के मैदान में
       तीन बार मारी कंकर रास्ते में शैतान के

  बोले ज़िबह का हुक्म हे तुमको ऐ मेरे नूरे नज़र
    इस्माईल बोले आप न करे बिलकुल फिकर

     ऐ अब्बु जान हुक्मे रब हे तो जल्दी कीजिए
     मेरी जानिब से बिलकुल भी न गम कीजिये

ज़िबह होने के लिए में बिलकुल तय्यार हूँ
    फैसला ऐ रब से में बहुत ही शाद हूँ

     लेटा दिया आप ने इस्माईल को ज़मीन पर
     हाथ में ली छुरी और पटटी बांधी आँख पर

   हुक्मे रब से वह छुरी इस्माईल पर न चली
   लाख कोशिश की पर वह छुरी न चली

      इधर होगया हुक्म दुंबा लाने का जिब्राईल को
      दुंबा रख कर जिब्राईल ने निकाला इस्माईल को

  होते ही ज़िबह खोली आँख जेसे इब्राहीम ने
  पाया दुंब ज़िबह जो भेज था मालिक ऐ अज़ीम ने

  कर के दुंबा ज़िबह सवाब पाया बेटे का इब्राहीम ने
  उधर कामयाबी का मिला परवाना शहंशाह ऐ क्रीम से

     देकर शिकस्त शैतान को इब्राहीम गए अपने खर
     फ़ज़ल ऐ खुद से साथ हैं उनके नूर ऐ नज़र

  फिर घर आकर आपने बताया सारा माजरा
  ये सुन कर बहुत खुश हुवी हज़रत ऐ हाजरा

     वाकिया ऐ इब्राहीम तो पढ़ ही लिया आप ने
    के केसी क़ुरबानी पेश की इन बेटे और बाप ने

  मेरे मोला को इतनी पसंद आई क़ुरबानी जनाब
  वाजिब हे हम पर भो गर हो साहिब ऐ निसाब

      कोई गरीब भी करता हे क़ुरबानी जनाब
      मालिक ऐ दो जहाँ देंगे उसे बेहद सवाब

  फ़ज़ीलत ऐ क़ुरबानी में से ये भी खास हे
  क़तरा ऐ लहू गिरने से क़ब्ल गुनाह भी माफ़ हे

    हो क़ुरबानी में ऐसा जानवर जिसकी क़ुरबानी हो हलाल
   अफज़ल हे यही के ज़यादह से ज़यादह हो उसके बाल

  दोस्तों हर बाल के बदले बढ़ा कर नेकी दी जायेगी
  और शये मज़बूहा को बढ़ा कर भी तोली जायेगी

     इसी लिए मोटा फरबह हो क़ुरबानी का जानवर
    ता की तू हश्र में हो बहुत ही नामवर

  10 ज़िलहिज्ज से होगी क़ुरबानी ये तो सब को याद हे
  कर के तसव्वुर बस यही साजिद बहुत ही शाद हे

    बस याद रखना हे ये ईद रहती हे तीन दिन
  इब्तिदा ऐ तकबीर योम ऐ अरफात हे और इंतिहा बस पांच दिन

   मुख़्तसर करदिया साजिद बिजनोरी  ने अपना कलाम
    पढ़ने वालो को हे अहल ऐ बिजनोर की जानिब से सलाम

कातिब।।।साजिद मालिक मख्वाडा बिजनोर
साजिद मालिक मोबाइल नंबर 8449121198
Sajid malik phone number
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Tuesday, November 24, 2015

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Sajid malik ke mukhtasar halaat.in Hindi

       साजिद के मुख़्तसर हालात

  जो भी सुन रहे हो इस महफ़िल के मुअज़्ज़ज़् सितारों।
  वो  हे मेरी मुख़्तसर सी दास्ताँ यारो।

  नाम हे मेरा साजिद और वालिद को क़ासिम कहते हैं।
  करते हैं काम राज गिरी का और बिजनोर में रहते हैं।

  बताता हूँ के पहले में मामू के पास पढता था
  याद तो होता नहीं था पर कोशिश बहुत करता था

  आखिर कार खुदा ने मुझे हाफ़िज़ बना दिया
  उसके बाद दाखला मेरा सराय में करा दिया

  मोली असद के पास याद किया मेने क़ुरआन वहां पर
  मोली अतहर और क़ारी ज़ुबेर भी रहते थे जहाँ पर

  कोशिश से अपनी आगे बढ़ने का था जोश
  बनना हे मौलाना बचपन से थी ये मेरी सोच्

  ब फज़ले खुदा जब क़ुरआन याद हो गया मेरा
  तो करके राये जलालाबाद में दाखला किया मेरा

  वही जलालाबाद मौलाना अक़ील जहाँ रहते हैं
  बिलाल और इमरान को मंतिक़ और फिक़्ह का इमाम कहते हैं

  पाई गई हे मौलाना शाहनवाज़ में भी बड़ी नज़ाकत।
  और माहिर थे उसुले फिक़्ह में मोली शराफत

  और हिफ़्ज़ में नदीम और ज़हीर दर्स देते थे।
  और थे एक उस्ताज़ जिनको कारी नाज़िम कहते थे।

  इस मदरसे के नाज़िम कारी अल्ताफ थे।
  जो बुजुर्गियत में अपनी माहताब थे।

  आखिर जब में पकहुँचा तो दिल नहीं लगा मेरा वहां
  पर देख कर उस्ताज़ो की शफक़्क़्त मेरे दिल ने कहा

  के यही वह मदरसा हे अच्छी जिसमे तालीम दी जाती हे
  और उस्ताज़ो के नरम वो नाज़ुक इशारो से तरबियत भी की जाती हे

  रफ्ता रफ्ता चौथा साल भी गुज़ार गया मेरा
  और कुछ साथियो ने आखिर तक साथ दिया था मेरा

   जिक्र करूँ  उनके नाम को में ज़रूरी समझता हूँ
   दोस्त हैं वह मेरे जिन्हें में लईक और आमिर कहता हू

   और हे एक और आमिर जो जलालाबाद में रहता हे
   आज अब्दुल अलीम की निस्बत से अबसार भी नेता हे

    मुजाहिद और बिलाल की दोस्ती अब भी इत्तिहास हे
   और फहीम भाई के अलविदा का हमें अब भी अहसास हे

   और साथ में रहते थे हमारे शहबाज़ भाई
   शायद उन्हों ने हम से अलग रहने की क़सम खाई

   किस्मत करगई काम हम्माद और मुबीन का नंबर आगया
   तो ख़ुशी से सब साथियो का चेहरा जग मगा गया

    जब देवबंद में नंबर हमारा न आया
    तो मसकन हमारा अमरोहा क़रार पाया

    देखा मेने यहाँ उस्तज़ो में इत्तिफ़ाक़
   कीना कपट से ये लोग करते हैं इजतिनाब
    मुफ़्ती अफ्फान यहाँ माहिर हे फ़साहत और बलाग़त में
   मुफ़्ती अंसार भी माहिर हे यहाँ अदब और इबारत में

   मुफ़्ती फ़ुरक़ान भी जहाँ एक मुजाहिद हैं
     तो बुजुर्गियत में यहाँ मुफ़्ती शहीद हैं

    फिक़्ह के इमाम समझे जाते हैं रियासत अली
    और अब्दुल गफूर की नॉलिज से भी खिलती हैं कली

    मुफ़्ती ज़ाहिद की मंतिक़ भी मशहूर हे
    पियार से समझाने में वह मारूफ़  हैं

    बताता चलूं सब से खतरनाक कोन हे
    नाम हे उनका रिफाकत और लक़ब डॉन हे

   उस्तज़ तो हे बहुत पर मुख़्तसर कर दिया मेने
   और वगेरह कहकर ज़िक्र को खत्म करदिया मेने

   गलती से भूल गए थे हम इब्राहीम और राशिद को
   पर आगई याद उनकी बीरा दरे आबिद को

   एक मर्तबा जब सफ़र किया ढकके का  मेने
   तो देखा ज़हूर और ऐजाज़ को दोम पढ़ते मेने

    वही सब साथी जो सराये में रहते थे
   उन्ही में से दो को वक़ार और आदिल कहते थे

   ख़ास साथियो में से रफत और शादाब थे
   माइंड में अपने दोनों ही महताब थे

   सफ़र के साथ ख़त्म करता हूँ में अपना कलाम
   पढ़ने और सुनने वालो को मेरा दिल से सलाम
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Sajid Malik ke mukhtasar halaat.in Urdu

ساجد کے مختصر حالات

  جو بھی سن رهے هو اس محفل کے معزز ستاروں
  وه هے میری مختصر سی داستاں یارو

  نام هے میرا ساجد اور والد کو قاسم کهتے هیں
  کرتے ہیں کام راج گری کا اور بجنور      میں رهتے هیں

  بتاتاهوں کے پهلے میں ماموں کے پاس پڑھتا تھا
  یاد تو هوتا نہیں تھا پر کوشش بہت کرتا تھا

  آخر کار خدا نے مجھے حافظ بنا دیا
  اس کے بعد داخلۂ میرا سراۓ میں کرا دیا

  مولي اسعد کے پاس یاد کیا مینے قرآن   وهاں پر
  مولي اطهر اور قاری زبﻱر بھی      
رهتے  تھے جهاں پر

  کوشش سے اپنی آگے بڑھنے کا تھا جوش
  بنا هے مولانا بچپن سے تھی یہ میری سوچ

بفضل خدا جب قرآن یاد ہو گیا میرا
  تو کرک‎ راے جلال آباد میں داكھلا کیا میرا

  وهی جلال آباد مولانا عقیل جہاں رہتے هیں
  بلال اور عمران کو منطق اور فقہ کا       امام کهتے هیں

  پائی گئی هے مولانا شاه نواز میں بھی بڑی نزاکت
  اور ماهر تھے اصول فقہ میں مولي شرافت

  اور حفظ میں ندیم اور ظہیر درس دیتے     تھے
  اور تھے ایک استاذ جن کوقاری ناظم      کهتے تھے

  اس مدرسۃ کے ناظم قاری الطاف تھے
  جو بزرگيت میں اپنی مہتاب تھے

  آخر جب میں پهنچا تو دل نہیں لگا میرا    وهاں
  دیکھ کر استاذو کی شفقت میرے دل نے کہا

  کے یهی وه مدرسہ هے اچچهی جس      میں  تعلیم دﻱجاتی هے
  اور استاذو کے نرم و نازک اشارو سے     تربیت بھی کی جاتی هے

  رفتہ رفتہ چوتھا سال بھی گزر گیا میرا
  اور کچھ ساتھیوں نے آخر تک ساتھ دیا     تھا میرا

   ذکر کروں ان کے نام کو میں ضروری   سمجھتا هوں
   دوست هیں وه میرے جنهیں میں لئﻱق اور عامر کهتا هوں

اور هے ایک اور عامرجو جلال آباد میں  رهتا ہے
   آج عبدالعلیم کی نسبت سے ابصار بھی نیتا هے

     مجاهد اور بلال کی دوستی اب بھی اتتهاس هے
     اور فهہیم بھائی کے الوداع کا ہمیں اب بھی احساس اے

     اور ساتھ میں رہتے تھے ہمارے شہباز بھائی
     شاید انہوں نے ہم سے الگ رہنے کی قسم کھائی

    قسمت کرگئی کام حماد اور مبین کا نمبر آگیا
     تو خوشی سے تمام ساتھیوں کا چہهرا جگ مگا گیا

      جب دیوبند میں نمبر همارا نہ آیا
     تو مسكن همارا امروهہ قرار پایا

      دیکھا میں نے یہاں استاذو میں اتفاق
    کینہ کپٹ سے یہ لوگ کرتے هیں اجتناب
 
   مفتی عفان یہاں ماهر هے فصاحت اور بلاغت میں
     مفتی انصار بھی ماهر هے یهاں ادب اور عبارت میں

      مفتی فرقان بھی جهاں ایک مجاہد هیں
     تو بزرگيت میں یهاں مفتی شاهد هیں

     فقہ کے امام سمجھے جاتے هیں ریاست علی
      اور عبدالغفور کی نولج سے بھی كھلتي هے کلی

      مفتی زاهد کی منطق بھی مشہور هے
      پیار سے سمجھانے میں وه معروف هیں

       بتاتا چلوں سب سے خطرناکون هے
       نام هے انکا رفاقت اور لقب ڈون هے

      استاذ تو هے بہت پر مختصر کر دیا مینے
     اور وغﻱره کہہ کر ذکر کو ختم کردیا مینے

        غلطی سے بھول گئے تھے ہم ابراہیم اور راشد کو
      پر آگئی یاد ان کی برا درے عابد کو

       ایک مرتبہ جب سفر کیا ڈھككۂ کا مینے
       تو دیکھا ظهور اور اعجاز کو دوم پڑھتے مینے

       وهی سب ساتھی جو سراۓ میں  رهہتے تھے
      انہی میں سے دو کو وقار اور عادل کہتے تھے

     خاص ساتھیوں میں سے رفعت اور شاداب تھے
     مائنڈ میں اپنے دونوں هی مهتاب تھے

        سفر کے ساتھ ختم کرتا ہوں میں اپنا کلام
       پڑھنے اور سنےوالو کو مﻱرا دل سے سلام

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